कोई साल भर हो गया कुछ नहीं लिख पाए । कुछ तो ज़िंदगी की मुस्रुफियत कुछ गूगल में रद्दो बदल ने ब्लॉग ही गुम कर दिया था।
आज खोजते खोजते मिला । पर फॅमिली वेब साईट बनायी थी वोह तो अब भी नहीं मिली। ऐसा लग रहा है जैसे कोई पुराना फी मिल गया जिससे बात करने को जी चाहता है । इस बीच सारे दांत निकल गए और शकल से ही उम्र का अहसास होने लग गया । वैसे भी शकल से अब कुछ फरक महसूस होने लगा है । मसलन मेरा सबसे बड़ा शौक़ वाएओलिन बजाना । पहले हुड़क होती थी, अब कभी कभी लगता है टालो फिर बजायेंगे । फिर कुछ करने को न हो तो एक वोही ज़रिया है वक़्त काटने का । लगता है जिस्म के साथ साथ दिमाग भी सुस्त होता जा रहा है और आदत में खाली पड़े रहना शुमार होता जा रहा है । वैसे काम बोहोत हैं करने को । मसलन उम्र भर जो कागज़ इकट्ठे किये थे के कुछ तकनीकी काम करेंगे वोह अब सब बेकार हो गए हैं । डाटा अपडेट करने के लिए जितने बैठने की ज़रुरत है उतना बैठ पाना मुश्किल लगता है सो उन को रद्दी में दे देना ही बेहतर है । पर टांड पर से उतारे कौन। इसी तरह, शौक में कंपनी शरेस खरीदे थे श्रीमती ने, अब उनके बाद डिविडेंड बेकार जा रहा है क्योंकी उनके खाते में जमा नहीं होता । तो अपने नाम में तब्दील कराना अलग मशक्कत है। फिर भी थोडा थोडा शुरू किया तो और न जाने कितने कागजात इकट्ठे करने है साथ में । मतलब वक़्त गुज़रता जा रहा है काम हो नहीं रहा है। फिर बहाना बन जाता है न करने का। शुक्र है कंप्यूटर है जो चाहे लिखो पढो बजाओ और चाहे जब मिटा दो चुटकियो में । और टैब और मोबाइल भी है। अच्छी चीज़ें बनाई बुढ़ापे के लिए । वक़्त अच्छा कट जाता है ।
फिर भी न जाने क्यों घूम फिर कर अकेलापन ही लगता है ।