बहोत दिन के बाद लिखने की इच्छा हुई। ख़ास तौर से इसलिए की अब हिंदी में भी लिख सकते हैं। पिछले महीने और इस महीने में देश में दो ख़ास मुद्दे खूब उछले , एक बाबरी मस्जिद मामले पर फैसला और दूसरा कामन वेल्थ खेल। दोनों मामलों में अंत भला ही रहा।
बाबरी मस्जिद मामले में टिप्पणियों में कुछ पत्रकारों की इस बात पर की उस जगह को राम जन्म भूमि होने का कोई सबूत नहीं है कुछ अजब सा लगा। भारत की संस्कृति आस्था विश्वास समभाव और सद्भाव पर आधारित रही है। कागज़ ना होने के कारण सारी विद्या सूचना आदि मौखिक प्रसारण द्वारा ही होती थी । शायद इसलिए त्रेता युग की बातें भी मौखिक प्रसरण होते होते आस्था और विश्वास में परिणित हो गयीं. क्या वेदों की मूल प्रति उपलब्ध है ? फिर उस पर कैसे विश्वास है की वेद प्राचीनतम कृतियाँ हैं। ऐसे ही राम के जन्मा स्थान होने का यही सबूत है के पीढी दर पीढी यही माना गया । मेरी समझ में यह सूडो आधुनिकता है के अगर किसी बारे में भौतिक प्रमाण न हो तो उसको पुरी तरह नकार दिया जाय । सदियों से चला आया विश्वास ही उसका प्रमाण है। पर लगता है वोटों की राजनीती के कारण लोग अर्केओलोगिक सुर्वे ऑफ़ इंडिया द्वारा उस स्थान पर प्राचीन इमारत दबी होने को भी नकार रहे हैं। ईशा क्या प्रमाण है की उस ईमारत को बनाने के लिए पूर्वस्थापित इमारत जो हो सकता है राम भवन ही रहा हो, को ध्वस्त नहीं किया गया।
कामन वेल्थ खेल तो भली प्रकार निबट गए। पर यही लगता है की जिन महानुभावों ने बाद में कमरकस कर स्थिति संभाली वे शुरू में ही क्यों नहीं उतरे स्थिति समभलने को। शयद इसलिए की फिर उनको वाहवाही तब कम मिलती। पैंतरेबाजी।
Friday, October 15, 2010
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